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रविवार, 22 जून 2025

आ अब लौट चलें !

 

                आ अब लौट चलें ! 

                                     समाज में रोज ही मनुष्य की मानसिक विकृतियों के समाचारों से क्या अख़बार , क्या सोशल मीडिया भरा पड़ा रहता है।  कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब कि सुर्ख़ियों में ऐसी कोई भी एक घटना न हो। हमने अख़बार पढ़ा या फिर सोशल मीडिया पर स्क्रॉल किया और आगे बढ़ गए, लेकिन क्या सब ऐसा कर पाते हैं। हत्याएँ, आत्महत्याएँ, दुष्कर्म, लूटपाट आदि क्या हैं ? ये आज के सबसे बड़े सामाजिक मुद्दे हैं, लेकिन इतने पर भी हम शायद ये नहीं सोच पा रहे हैं कि इन पर अंकुश कैसे लगाया जा सकता है ? आधुनिक जीवन शैली और जीवन में स्वच्छंदता चाहने वाली पीढ़ी इसके दुष्परिणामों के विषय में सोच ही नहीं पाती है,  न ही सोचना चाहते हैं। उनकी सोच अब वहाँ तक जाना ही भूल गयी। 

 आज की सोच !  

                  आज की नई पीढ़ी एकल परिवार की पक्षधर है क्योंकि यहाँ उनको कोई भी टोकने रोकने वाला नहीं चाहिए। अपनी नौकरी के बाद उनका मन आएगा तो घर में रहकर आराम करेगी या फिर बाहर जाकर क्लब, पार्टी या फिर घूम-फिर कर तरोताजा होकर डिनर लेकर घर आकर सो जाना पसद करते हैं।  जब तक वे अकेले रहते हैं तब तक तो सब ठीक चलता रहता है, लेकिन परिवार में नए मेहमान के आने के साथ ही उनकी जीवनचर्या बदल जाती है। बच्चे के साथ पहले की तरह से चलना संभव नहीं है।  तब शुरू होता है गृह कलह। जिस स्वच्छंद जीवन के वह लोग आदी होते हैं, वह बिलकुल भी संभव नहीं हो पाता है। यही तो यह स्थिति है, जिससे निबटने के लिए समझदारी से काम लेना होता है और फिर अपने पुराने परिवेश में कुछ अनुशासित रहने की सोचने की जरूरत है।  

                जीवन में या तो इंसान अकेले ही रहने का निर्णय ले, लिव-इन या फिर सिर्फ दो ही रहने के बारे में सोचने लगे हैं। ये न तो सामाजिक दृष्टि से समाधान है और न ही पारिवारिक दृष्टि से। हम सृष्टि के नियमों को तोड़ तो सकते हैं लेकिन फिर एक रोज जब अकेले बिल्कुल अकेले खड़े होते हैं तो आशा भरी नज़रों से उनको देखते हैं जो कहीं से भी हमारे कुछ लगते हैं। नहीं तो अकेले घर में पड़े पड़े दम तोड़ देते हैं। यहीं कहीं तो कई कई दिनों तक पता ही नहीं चलता है कि इस घर में रहने वाला नहीं रहा है। 

 परिवार की सुरक्षा !  

                 रोज नयी-नयी खबरें-  जो बाल यौनशोषण, वर्चुअल ऑटिस्म, उत्श्रृंखलता या फिर छोटी उम्र में जरा सी अनबन या डाँटने पर आत्महत्या  की घटनाओं से लेकर चर्चा का विषय बनती हैं।  यह वहीं ज्यादा होता है, जहाँ दोनों ही कामकाजी होते हैं और बच्चे या तो मेड के सहारे  या पड़ोसियों के घर में छोड़ दिए जाते हैं। हर कदम पर लोग अच्छे ही नहीं होते हैं और फिर कई जगह पर ऐसे ऐसे अपराध सामने आते हैं कि लोगों का विश्वास रिश्तों से उठ जाता है फिर क्या ? इसका विकल्प हमको ही खोजना पड़ेगा।  

              अभी देर नहीं हुई है जब जागो तभी सवेरा - उच्च शिक्षा, कामकाजी होना कोई अपराध नहीं है, लेकिन उसको भी सकारात्मक रूप से देखा जाय। जब तक आप सक्षम हैं, आपको किसी की जरूरत नहीं है लेकिन परिवार वह वृक्ष है जो आपको धूप आने पर छाया देने से इंकार कभी नहीं करेगा। आप अपने रिश्तों को मधुर बनाये रखें। 

ससम्मान रखिए! 

                    आपके माता-पिता भी आपका साथ चाहते हैं और साथ ही बच्चों का भी।  उन्हें आप ससम्मान अपने साथ रखिए। आपके बच्चों को सुरक्षा कवच मिल जाएगा। आपको एक बेफिक्री कि हमारा घर और बच्चे सुरक्षित हैं। रहा सवाल बड़ों की रोक टोक का तो वे कोई किराये पर लाए हुए इंसान नहीं हैं बल्कि आपके अपने हैं, अगर उनका सुझाव या बात उचित है तो स्वीकार कर लीजिए और अगर नहीं है तो उनको समझाइये कि ऐसा संभव नहीं है। उनके पास आपसे ज्यादा अनुभव है सो उसका लाभ लीजिए। 

 वापस लौटना उचित है ! 

                  अपनी संस्कृति से मिले संस्कार और पारिवारिक ढाँचे में ढलना कोई बुरी बात नहीं है। वक्त किसी ने नहीं देखा है , जब जब मुसीबत आती है तो सिर्फ माता-पिता ऐसे होते हैं जो आपके साथ खड़े होते हैं, भले ही उनके पास सीमित साधन हों। हमें वापस लौटने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए।  अपने परिवार और बच्चों के लिए एक सुखद भविष्य बनाने में यदि वापस लौटना उचित है तो वापस आ जाइये। ऐशो-आराम की जिंदगी जो आप जी रहे हैं, उसमें कोई खलल नहीं पड़ेगी बल्कि बच्चों को संस्कार जैसी चीजें मिलेंगी।  वे मोबाइल या टीवी के गुलाम नहीं होंगे। 

एक साथ जरूरी है ! 

                   अपना समझिये तभी उनको घर लाइए। अगर एक नौकरानी या नौकर का विकल्प समझ कर ला रहे हैं तो रहने दीजिए। वापस लौटने का अर्थ है कि आप अपनी जड़ों से फिर से जुड़िए और उनसे वह ग्रहण कीजिए जिसकी आज जरूरत है। रुपये पैसे धन दौलत वक्त पर बहुत कुछ तो होते हैं, लेकिन सब कुछ नहीं होते हैं। समय पर सब कुछ सिर्फ कुछ अपने रिश्ते होते हैं जो कंधे पर हाथ धरे होते हैं। 

 

रेखा श्रीवास्तव 

71, पीडब्ल्यूडी हाउसिंग सोसाइटी  

सहकार नगर , रावतपुर गाँव , कानपूर - 208019 

मोबाइल 9936421567 

Rekha Srivastava 

State Bank of India

Branch - keshavpuram 

IFSC - SBIN0016581  

 

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

 

 उम्र खर्च हो गयी

बिना सोचे-समझे,

बहुत पैसे कमाने के लिए।

धनी आज बहुत हैं,

रखने की जगह नहीं,

बस चुप हो गया।

वक़्त ही नहीं मिला संभालें,

जैसे भी थे, कुछ तो करीब थे।

कम अमीर थे,

लेकिन दिल से अनमोल थे,

तब शायद हम खुशनसीब थे।

 

 

सोमवार, 6 जनवरी 2025

जयश्री गांगुली !

 

           जयश्री गांगुली ! (खो गए जो समय के साथ। )

 

                          जयश्री गांगुली यही नाम था उसका, बहुत बड़े घर की बहू और संपन्न घर की सात भाइयों की सबसे छोटी इकलौती बहन। जिसने जीवन में अभाव कभी देखे ही नहीं थे। हाथों हाथ रहने वाली प्यारी सी लड़की थी। बोलने में बहुत मधुर और रवींद्र संगीत में पारंगत होने के साथ साथ बहुत अच्छी चित्रकार थी।   

                   उसका पति एक सैन्य अधिकारी का पुत्र था और बड़ा लाड़ला बेटा, एक कंपनी में मैनेजर था। जयश्री के पिता ने अच्छा घर और वर देख कर शादी कर दी। उनका घर एकदम किसी रईस के घर की तरह था। एक बंगलेनुमा घर में रहते थे। उस समय उनके घर में शानदार रेशमी परदे झूला करते थे। जब वह सब सुख सुविधाएँ, जो मध्यमवर्गीय परिवारों के लिए जुटाना संभव नहीं था, उनके घर में उपलब्ध थीं। घर जतिन की माँ के अनुरूप ही चलता था क्योंकि एक सैन्य अधिकारी का जीवन जिस अनुशासन में बँधा होता है, वह भी उसी अनुशासन की आदी थीं। 

                 जयश्री एक अनुशासित और अपनी सासुमाँ की आज्ञा पालन करने वाली बहू थी। जितना सुख उसने अपने पिता के घर में उठाया था, उससे ज्यादा ही सुख उसको यहाँ पर भी था। जितना कहूँ , उसके लिए कम ही रहेगा। 

                 जयश्री के दो बेटे थे - बड़ा सुदीप और छोटा प्रदीप।  दोनों बच्चे  एक प्रतिष्ठित कान्वेंट स्कूल में पढ़ रहे थे। उसकी जिंदगी ने एक ऐसी करवट ली कि सब कुछ सारे गुण कहाँ खो गए नहीं मालूम। पति की महत्वाकांक्षाओं ने कंपनी में गबन कर दिया और एक लम्बे समय तक करते रहने के बाद वह पुलिस को तो नहीं सौंपा गया लेकिन उसको निकल कर बाहर कर दिया गया। जयश्री एकदम काँप गयी क्योंकि घर तो सासुमाँ ही चला रही थीं और जतिन की कमाई सिर्फ उसकी शान शौकत के लिए ही होता था। 

               कंपनी से निकल कर जतिन एकदम बेकार होकर अपनी पुरानी आदतों और साथियों को छोड़ नहीं पाया और फिर पैसे के कमाने की लत ने उसको गलत कामों में फंसा दिया। ये जयश्री की गलती थी कि वह पति के आचरण को अब तक समझ नहीं पायीं थी। एक दिन पुलिस की रेड पड़ी और जतिन को नकली नोटों के साथ पकड़ा गया था और घर की तलाशी लेने पर काफी करेंसी बरामद की गयी। पुलिस ने भी बेइज्जत करने का कोई भी कसर नहीं छोड़ी, जतिन को हथकड़ी डाल कर सड़क पर दूर खड़ी जीप तक पैदल चलाते हुए ले गयी। माँ इस सदमे को सह नहीं पाई, उनको हार्ट अटैक पड़ा और वह चल बसी। बचे जयश्री और उसके नाबालिग बेटे - उन्होंने जतिन के छोटे भाई नितिन को सूचना दी और नितिन तुरंत आया। पुलिस सिर्फ माँ की अंतिम क्रिया के लिए जतिन को अपनी कस्टडी में लायी और वापस ले गए। जतिन  भाई को देख कर रो पड़ा और बच्चों को गले लगाकर खूब रोया लेकिन अब कुछ कर नहीं सकता था। 

         नितिन ने माँ के सारे अकाउंट खोलने के लिए कानूनी कार्यवाही करके जयश्री के लिए कुछ समय के लिए आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था कर दी। जयश्री अकेले ही सब लड़ाई लड़ने लगी, लेकिन कुछ महीनों के बाद मकान मालिक ने भी मकान खाली करने के लिए नोटिस दे दिया।  बाकी किराया होने के कारण उसने सामान भी कब्जे में ले लिया। जयश्री अपने जरूरी सामान लेकर अपने पिता के घर चली गयी। वह घर जो उसके लिए हमेशा खुला रहता था, पिता के न रहने पर उसके घर पहुँचने पर किसी ने कोई स्वागत नहीं किया।  लेकिन रहने के लिए उसको पिता का कमरा दे दिया गया। पापा के पास कमरा ही था कोई किचन वगैरह तो नहीं था और सारे भाइयों का अपना अलग अलग पोर्शन था। कुछ ही महीने गुजरे थे कि भाभियों ने कहा कि अब अगर दूसरा घर ले लें तो अधिक अच्छा रहेगा। बच्चे बड़े हो गए हैं तो पापाजी का कमरा भी उनको देना पडेगा। 

               जयश्री ने वहाँ से बहुत दूर कहीं एक मकान खोजा, जो सबसे ऊपर की मंजिल पर बना हुआ एक कमरा और उसके आगे एक बरामदा था बस उसके आगे खुली लम्बी सी छत। इत्तेफाक से उसके उस घर के पास से गुज़रते हुए जयश्री ने देख लिया और जिद करके अपने घर ले गयी। जब उसके कमरे में घुसी तो जैसे किसी ने आसमान से जमीन पर लाकर पटक दिया था -  एक लकड़ी का तख़्त उस पर एक दरी और चादर पड़ी थी। एक लोहे का बक्सा जिस पर कुछ जरूरी सामान रखे थे और सामने स्टूल पर एक टेबल फैन। एक स्टूल पर स्टोव रखा था। उसके उस रईसी ठाठ बाट की साक्षी थी, उसे हालत को देख कर सदमे में आ गयी।

              किसी तरह से घर चलाना था, कभी शौकिया पढ़ाया था, उसको अनुभव था और उसी अनुभव के सहारे नौकरी कर ली। आखिर कितना कर लेती वह , बच्चों की पढाई छूट गयी दोनों ही नाबालिग थे लेकिन संवेदनशील थे, बड़े ने एक फैक्ट्री में नौकरी कर ली, वहाँ घंटों पर भुगतान होता था और छोटे को कान्वेंट से निकाल कर हिंदी माध्यम में पढ़ना शुरू कर दिया लेकिन मन उसका भी परेशांन रहता था।  रात में सब चुपचाप खाना खाते और सो जाते सुबह से वही रूटीन शुरू हो जाता। 

               एक दिन जतिन जमानत पर छूट कर आया और रातोंरात वह चला गया, घर में बताया या नहीं लेकिन चला गया। कुछ दिन बाद सब चले गए।  कहाँ? किसी को पता नहीं चला। उसे प्यारी सी महिला, जो केयरिंग थी, कुशल गृहणी थी, एक अच्छी माँ और पत्नी थी लेकिन आज दसियों वर्ष हो गए और उसका किसी को भी कुछ भी पता नहीं है।  गुम हो गया एक नाम और इंसान। 

शनिवार, 28 दिसंबर 2024

सम्मान!

 :

                                                   सम्मान!

 

                    असद ने नेट से देखा कि नवरात्रि की पूजा में क्या-क्या सामान लगता है और जाकर बाजार से खरीद लाया। 

             वह बिंदु के आने का बेसब्री से इंतजार रहा था और समय है कि कट नहीं रहा था। वह आँखें बंद करके लेट गया और अतीत में घूमने लगा। 
              2 साल से वह अरब में था और बिंदु यहाँ एक ऑफिस में संविदा पर नौकरी कर रही थी। उनका परिचय फेसबुक से हुआ था। अहद वहाँ अकेला और बिंदु सबके होते हुए भी अकेली थी। वे एक दूसरे के दुःख को महसूस करने लगे थे। असद वहाँ कमा रहा था और घर वाले ऐश कर रहे थे। 
           अचानक असद के अब्बू का इंतकाल हो गया और वह घर लौट आया।  सब कुछ दूर रहते भी उन लोगों ने तय कर दिया था कि बिना किसी को खबर दिए दोनों ने कोर्ट मैरिज कर लेंगे। एक अप्रत्याशित निर्णय था।  
          उसे विश्वास था कि उसके घर वाले तो मान ही जायेंगे क्योंकि घर को इतना संपन्न उसकी कमाई से ही बना लिया है।  लेकिन घर में सवाल उठाते ही - अम्मी ने कह दिया कि वह ऐसे किसी भी कदम से उसको जायदाद से बेदखल कर देगी क्योंकि सारा कुछ तो अब्बू के नाम ही था। 
             उसने बिंदु के घर जाकर शादी की  बात करनी चाही तो बिंदु के घरवालों उसका नाम सुनते ही बेइज्जती करके निकाल दिया। उसको लव जेहाद में फँसाने की धमकी भी दी गयी। छह महीने मामला संभालने की कोशिश की और इंतजार किया।  आखिर में बिंदु ने वहाँ से घर छोड़कर अपना घर बनाने का निर्णय ले लिया। पहले दिन अपने घर जा रही थी। 
        बिंदु के आने की आहट सुनकर उसकी तन्द्रा टूटी। उसने दरवाजा खोलकर झुकते हुए बिंदु का इस्तकबाल किया। 
       बिंदु ने घर में घुसते हुए एक अलमारी में लाल चुनरी नारियल देवीजी की फोटो देखी। उसने असद की ओर मुड़ते हुए पूछा - "ये क्या है?" 
 "तुम्हारी पूजा का सामान क्योंकि मैं चाहता हूं कि तुमने मेरे लिए घर छोड़ा है लेकिन जो संस्कार खून में बसे हैं , उनकी मैं इज्जत करता हूँ । तुम अपनी पूजा जारी रखना इसी में हमारी खुशी है। 
         उनके घर में दुर्गा सप्तशती और कुरान एक साथ रखे थे।

सीमान्त !

 

                                                     सीमान्त !

                    विनी की पोस्टिंग शहर से दूर एक नई टाउनशिप बनाने वाली जगह लगाई गई। वही निर्जन निर्माण स्थल पर सामने के मैदानों में समूहों से बने आवासीय घर, मजदूर रहते थे और जहाँ उनके बच्चे खेलते थे और यही इलाका ही तो वहाँ इंसानों के होने का अहसास कराता था।

               नवरात्रि आई तो रेवती को लगा कि वह क्या करेगी? नवरात्रि में कैसे कन्याओं को खिलाएगी। उन्होंने बगल में रहने वाली आशा को बोला - ''हम शाम को चल कर उन झोपड़ी वाली बच्चियों के लिए बोल कर आयेंगे।''
              "बावरी हुई हो ये लोग पता नहीं किस जाति के है? इनकी लड़कियों के लिए तो मैं न जाऊँगी।"
            रेवती चुपचाप चुप रह गई और उसने अपने काम वाली से कहा - "तुम जो लड़कियाँ हो, उन्हें नहलाकर धुले कपड़े कर तैयार रखने के लिए उनके घर वालों से कह देना।"
         सुबह वह गाड़ी से निकली और लड़कियों को इकट्ठा किया, दो लड़कियाँ दूर खड़ी लालसा में भरी नजरों से देख रही थीं।
      "तुम भी आओ अभी दो और चाहिए।" रेवती ने कहा तो वह पीछे हो गई।
       "मैम साहब वो मुसलमान हैं।" कामवाली ने बताया।
      "तो क्या हुआ? देवियों की कोई जाति नहीं होती।"
     वह सारी बच्चियों को ले आई और उन्हें भोजन करने के लिए  ले गई। जब उनकी पूजा करके उनको चुनरी ओढ़ाई तो सभी देवियाँ ही लग गयीं।
     रेवती खुश थी कि आज उसने इन शीटों के सामने जाति धर्म में अंतर को विसर्जित कर दिया।

उपेक्षित !

                                                             उपेक्षित !

 
 
पापाजी,

           आज मम्मी की कॉल आई थी कि आप चाहते हैं कि अपना पैसा हम लोगों के नाम करना चाहते हैं।  अब ये सब जो मैं कहना चाहती हूँ, वह कॉल से संभव नहीं है। 
          मैं आपके बेटे के सपने को तोड़ने वाली थी क्योंकि दस साल बाद आप पूरे मन से बेटे के स्वागत की तैयारी में बैठे थे और जब वह टूट गया तो आप दोनों ने मुझे बेमन से स्वीकार कर लिया। चाचाजी के जोर डालने पर मुझे घर में जगह मिलीं।
          आप बहुत अच्छा कमाते थे, पर आप दीन हीन ही दिखाते थे। पैसा ही आपका कर्म और धर्म था। अगर चाचा न होते तो हम कुछ बने ही न होते। हर जगह हम बहनें चाचा के साथ गए। कोई भी एंट्रेंस देना हो, इंटरव्यू देना हो या नौकरी पर जाना हो। 
          हमारी भी इच्छा थी कि हमारे पापा हमें प्यार करें और हमारे साथ रहें। 
          मुझे वह दिन याद है कि पढ़ाई के दौरान दीदी के अवसाद में चले जाने पर आप नहीं बल्कि चाचा मम्मी को लेकर वहाँ गए थे और उन्हें वहाँ से लेकर आए थे, उनका इलाज करवाया था।
          मेरी पढ़ाई का खर्च उठाने के लिए दोनों बहनों पर दबाव डाला गया था कि मैंने तुम लोगों को पढ़ाया है, अब इसकी जिम्मेदारी तुम लोग उठाओ। उनके अहसान से मैं आजतक मुक्त नहीं हो पायी। दीदी लोग पहले से नौकरी करने लगी थी तो उन लोगों ने अपनी शादी का खर्च खुद उठा लिया। जब मेरी शादी के लिए दोनों बहनों से फिर आर्थिक सहायता की माँग की गई , तो मेरा मन आत्महत्या करने का हो रहा था।
          मैं तब कमाती नहीं थी और आपने मेरे लिए एक अभिशाप साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। अपनी शादी में मैंने जरूरी जरूरतों के लिए मैंने अपनी सहेलियों से पैसा लिया था, जिसे अपनी कमाई से बहुत बाद में चुकाया।
            अब मेरे लिए आपके उस संचित धन की कोई आवश्यकता नहीं है। आप एक पिता होने के नाते फर्ज की इति धन देकर देना चाहते हैं तो क्षमा चाहती हूँ , मेरा बचपन आपकी इस सोच की बलि चढ़ गया।
             बस इतना ही, पैसा मेरे सिसकते बचपन और अब तक की घुटन का इलाज नहीं बन सकता। 
             
आपकी बेटी 
दिव्या

सोमवार, 23 दिसंबर 2024

विधि : जो खो गयी !

 

 

       विधि!

 

                       कुछ नाम और कुछ किरदार इस जगत में इस तरह बनकर आता है कि अपनी भूमिका निभाते हुए फिर कहीं गुम हो जाते है। उस किरदार को कुछ दिन याद रखा जाता है और फिर वह भुला दिया जाता है लेकिन कुछ ऐसे भी लोग होते हैं जो बार बार जेहन में एक प्रश्न की तरह से उभरते ही रहते हैं। 

                  उनमें एक विधि भी थी, थी इस लिए क्योंकि वह इस पटल से ही नहीं बल्कि अपने सभी मित्रों और परिचितों के लिए भी कहीं विलीन हो चुकी थी और तभी तो बार बार याद आती है।  वह असाधारण थी - रंग रूप और गुणों से भी जिसे कहते हैं सर्वगुण सम्पन्न वह थी ऐसी ही।  सोशल मीडिया  पर भी खासी लोकप्रिय थी क्योंकि उसकी कला ही उसकी पहचान थी। उसकी शिक्षा भी उसको बहुमुखी गुणों से संपन्न बना चुकी थी। वह संविदा पर संस्थान में कार्य कर रही थी और उसके ज्ञान के कारण ही उसको एक विभाग से दूसरे विभाग में पद मिल जाता था। उसके लिए काम कभी ख़त्म ही नहीं हुआ।       

        विधि के माता-पिता ने अपनी तरफ से उसके लिए सुयोग्य वर खोज लिया, जो कि पहले से ही कुछ परिचित भी था। उसके पिता विधि के पिता के बचपन के सहपाठी थे, जो अपनी संपत्ति के साथ गाँव में ही रहे और विधि के पिता  उच्चशिक्षा और नौकरी के लिए बाहर आ गए। 

         अंशुल भी उच्च शिक्षा प्राप्त  इंजीनियर था लेकिन वह शीघ्र शोध के लिए बाहर जाने वाला था। सबको यह था कि अगर वह बाहर जाएगा तब भी कोई समस्या नहीं क्योंकि विधि अच्छी जगह नौकरी कर रही थी। उनकी शादी कर दी गई और शादी के 6 महीने के भीतर ही अंशुल की यू एस जाने की औपचारिकताएँ पूरी हो गईं।  इस बीच विधि गर्भवती हो चुकी थी। उनके आपसी समझौते के अनुसार विधि ने नौकरी नहीं छोड़ी और वह वहीं एक हॉस्टल में रहने लगी। जैसे-जैसे डिलीवरी का समय समीप पा रहा था, विधि के माता-पिता उसको लेकर चिंतित हुए और इसी बीच अंशुल का संदेश आया कि उसको अब नौकरी छोड़कर माँ के पास गाँव चली जाना चाहिए। 

         विधि अपनी नौकरी छोड़कर गाँव चली गई, वहीं पर उसने बेटे को जन्म दिया। उसको यह नहीं पता था कि अंशुल का परिवार एक बहुत दकियानूसी परिवार है। इसीलिए दकियानूसी के चलते विधि को सामंजस्य बिठाने में परेशानी आने लगी। उसने अपने पिता को बुलाया उसके सारे हालत देखते हुए उसके पिता ने विधि को अपने साथ ले जाने का प्रस्ताव रखा, जो उसके सास ससुर को अच्छा नहीं लगा। गाँव में कुछ दिन रहने की बात तो सही थी, लेकिन लंबे समय तक रहना उसके लिए संभव नहीं था और वह अपने पिता के साथ अपने घर आ गई। अंशुल के घर वालों ने अंशुल से क्या? ये नहीं मालूम लेकिन अंशुल ने विधि से कहा कि उसको गाँव में ही रहना होगा। विधि कोई बगैर पढ़ी-लिखी या पराश्रित लड़की नहीं थी। उसने अपने लिए यू एस की टिकट करवाई और वह विजिटर्स वीजा लेकर अंशुल के पास पहुँच गई। अंशुल को यह अच्छा नहीं लगा लेकिन वह वहाँ कुछ कर भी नहीं सकता था। 3 महीने वह वहाँ रही। उसने अपना वीजा अंशुल के बेस पर बढ़ाने का प्रयास किया लेकिन वह सफल नहीं हो पायी और फिर तुरंत ही उसको वहाँ से वापस आना पड़ा। 
              उसने क्या देखा और क्या समझा यह नहीं मालूम? लेकिन उसने वापस गाँव जाने से इंकार कर दिया है और अपनी नौकरी के लिए फिर से प्रयास करने लगी। यह बात अंशुल के घरवालों को समझ नहीं आई। विधि के घरवालों ने भी बीच का रास्ता निकालने की बात सोची कि छुट्टियों में विधि अपनी ससुराल चली जाएगी और नौकरी के समय उसके बच्चे को माँ देखती थी और वह जॉब करती रहती थी। 
          फिर एकाएक क्या हुआ कि विधि अपने परिचय के दायरे से और सोशल मीडिया से एकदम गायब हो गई। उसने नौकरी भी छोड़ दी और कहीं कोई भी संदेश उसने नहीं छोड़ा। उसके ऑफिस वाले उसके सहयोगी, सहकर्मी और मित्र मंडली एकाएक सकते में आ गई कि आखिर इतनी सामाजिक और लोकप्रिय विधि अचानक चली कहाँ गई?  कुछ लोगों ने इस बारे में जानने की कोशिश की तो पता चला कि अंशुल वहाँ से डिग्री लेकर  वापस आ गया था और उसने एक जगह अच्छी नौकरी भी पा ली थी, लेकिन विधि उसके साथ नहीं गई थी या कहे वह विधि को अपने साथ नहीं ले गया। उसकी जिद थी कि विधि सब कुछ छोड़कर उसके माता-पिता के पास गाँव में रहेगी, जो शायद विधि के माता-पिता को स्वीकार नहीं हुआ और बच्चों का भविष्य देखते हुए वह विधि को अपने साथ ले आए। उन्होंने अंशुल से संपर्क किया और बीच का रास्ता निकालने का आग्रह किया। उसका हल यही निकला कि विधि एक पारंपरिक बहू पत्नी बनकर घर पर ही रहेगी और फिर उसने सबसे संपर्क खत्म करवा दिया।  उड़ते उड़ते यह भी खबर मिली कि विधि अब अपने पति के पास चली गई है लेकिन एक प्रतिभावान व्यक्तित्व की हत्या हो चुकी थी , जिसकी किसी ने कल्पना तक नहीं की थी कि एक सुसंस्कृत परिवार की बेटी स्वस्थापित व्यक्तित्व अपना वज़ूद खो देगा। उसका पता अब भी कम से कम मित्र वर्ग में किसी को नही है। माँ बाप बता देते हैं कि अब अपने पति  के साथ है।